PARASNATH CHALISA
PARAS
पारसनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करे तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा।।
तुमसे कर्म शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा।
8सेन की राजदुलारे, वामा की आँखों के तारे ।।
काशीजी के स्वामी कहये, सारी परजा मौज उड़ाये।
इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुंचे।। हाथी पर कसकर अंबारी, इक जंगल में गई सवारी
एक तपस्वी देखा वहां पर, उससे बोले वजन सुनाकर।। तपसी ! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते। तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया ।।निकले नाग नागनी कारे, मरने को थे निकट विचारे।
रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र नवकार सुनाया।।
मरकर वो पाताल सिधारे, पद्मावती धरयाद सिमर का देव कहा या नाम कमठ ग्रंथों में आया एक समय श्री पारस स्वामी राज छोड़कर बन की ढाणी तब करते थे ध्यान लगाए 1 दिन कमठ वहां पर आए फौरन ही प्रभु को पहचाना बदला लेना दिल में था ना बहुत अधिक बारिश बरसाई बादल गरजे बिजली गिराई बहुत अधिक पत्थर बरसाए स्वामी तन को नहीं हिलाई पद्मावती धरनेंद्र बी आई प्रभु की सेवा में चित लाई पद्मावती ने फन फैलाए उस पर सोनी को बतलाया धर्मेंद्र ने फन फैलाया प्रभु के सिर पर छत लगाया घर में नाच प्रभु ज्ञान उपाय समोसारण देवेंद्र छाया यही जगह यही छात्र का एक पात्र केसरी जहां पर हाय बाय पंडित ब्राह्मण विद्वानों जिसको जाने सकल जहान से 500 संघ में आए सब कट्टर ब्राह्मण कहलाए पारसनाथ का दर्शन पाया सब ने जैन धर्म अपनाया वही छात्र श्री सुंदर नगरी जहां सुखी थी पूजा सकरी राजा श्री भाजपा ने कहा एक दिन मंदिर बनवाए करवाया मिस्त्री आता था इससे पहले आता था उपाय बताया है
PARAS
|| श्री पारसनाथ चालीसा ||
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का, लेस उपकारी नाम।।
सर्व साधु सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार ।
अहिचछत्र और परसः को मन मंदिर में धार।।
||चौपाई ||
पारसनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करे तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा।।
तुमसे कर्म शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा।
8सेन की राजदुलारे, वामा की आँखों के तारे ।।
काशीजी के स्वामी कहये, सारी परजा मौज उड़ाये।
इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुंचे।। हाथी पर कसकर अंबारी, इक जंगल में गई सवारी
एक तपस्वी देखा वहां पर, उससे बोले वजन सुनाकर।। तपसी ! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते। तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया ।।निकले नाग नागनी कारे, मरने को थे निकट विचारे।
रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र नवकार सुनाया।।
मरकर वो पाताल सिधारे, पद्मावती धरयाद सिमर का देव कहा या नाम कमठ ग्रंथों में आया एक समय श्री पारस स्वामी राज छोड़कर बन की ढाणी तब करते थे ध्यान लगाए 1 दिन कमठ वहां पर आए फौरन ही प्रभु को पहचाना बदला लेना दिल में था ना बहुत अधिक बारिश बरसाई बादल गरजे बिजली गिराई बहुत अधिक पत्थर बरसाए स्वामी तन को नहीं हिलाई पद्मावती धरनेंद्र बी आई प्रभु की सेवा में चित लाई पद्मावती ने फन फैलाए उस पर सोनी को बतलाया धर्मेंद्र ने फन फैलाया प्रभु के सिर पर छत लगाया घर में नाच प्रभु ज्ञान उपाय समोसारण देवेंद्र छाया यही जगह यही छात्र का एक पात्र केसरी जहां पर हाय बाय पंडित ब्राह्मण विद्वानों जिसको जाने सकल जहान से 500 संघ में आए सब कट्टर ब्राह्मण कहलाए पारसनाथ का दर्शन पाया सब ने जैन धर्म अपनाया वही छात्र श्री सुंदर नगरी जहां सुखी थी पूजा सकरी राजा श्री भाजपा ने कहा एक दिन मंदिर बनवाए करवाया मिस्त्री आता था इससे पहले आता था उपाय बताया है
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